आज भारतीय संसद हमले की 24वीं बरसी है। 13 दिसंबर 2001 को आतंकियों ने लोकतंत्र के सबसे बड़े प्रतीक—संसद भवन—पर हमला किया था। उस समय संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था और देश के शीर्ष नेता भवन में मौजूद थे। यह हमला भारतीय लोकतंत्र पर सीधा प्रहार था।
हमले में आठ सुरक्षाकर्मी और एक सीपीडब्ल्यूडी कर्मचारी शहीद हुए। उनकी बहादुरी और तत्परता ने संसद को सुरक्षित रखा। आतंकियों को मार गिराया गया, लेकिन शहीदों का बलिदान हमेशा भारतीय इतिहास में अमर रहेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई नेताओं ने शहीदों को श्रद्धांजलि दी। लोकसभा और राज्यसभा में विशेष रूप से शहीदों को याद किया गया। विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों ने एक स्वर में कहा कि यह बलिदान लोकतंत्र की रक्षा का प्रतीक है।
हमले की भयावहता आज भी देश की स्मृतियों में ताज़ा है। संसद भवन के भीतर गोलियों की आवाज़ गूंजी थी, लेकिन सुरक्षाकर्मियों ने अपनी जान की परवाह किए बिना आतंकियों का सामना किया। उनकी वीरता ने साबित किया कि भारतीय लोकतंत्र की रक्षा के लिए हर बलिदान दिया जा सकता है।
संसद हमले की बरसी हमें आतंकवाद के खिलाफ एकजुट रहने का संदेश देती है। यह घटना भारतीय सुरक्षा बलों की वीरता और देश की एकता का प्रतीक है। शहीदों का बलिदान आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरित करता रहेगा।
आज का दिन केवल श्रद्धांजलि का नहीं, बल्कि संकल्प का भी है। संकल्प कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में देश कभी पीछे नहीं हटेगा। संकल्प कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए हर नागरिक सतर्क और एकजुट रहेगा।