सिंहस्थ पर्व उज्जैन में मनाया जाने वाला एक महान धार्मिक और आध्यात्मिक उत्सव है, जिसे हर 12 वर्ष में एक बार मनाया जाता है। जब बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में होते हैं, तब यह पर्व आता है। पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश से गिरी बूंदों में से एक उज्जैन में गिरी थी।
इस कारण यहाँ पवित्र क्षिप्रा नदी में स्नान का विशेष महत्व है। श्रद्धालु मानते हैं कि सिंहस्थ स्नान से पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह पर्व भारत की आस्था, संस्कृति और एकता का प्रतीक है।

सिंहस्थ क्यों मनाया जाता है?
1. ज्योतिषीय कारण (खगोलीय स्थिति):–
जब बृहस्पति (Jupiter) ग्रह सिंह राशि (Leo sign) में और सूर्य मेष राशि (Aries) में होता है, तब उज्जैन में सिंहस्थ कुंभ मनाया जाता है। यह स्थिति लगभग हर 12 वर्ष में एक बार आती है।
2. पौराणिक कारण (धार्मिक कथा):–
कुंभ पर्व की कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है। जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया, तो अमृत का कलश (कुंभ) निकला। उस अमृत कलश के लिए संघर्ष के दौरान चार स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरीं –
- हरिद्वार
- प्रयागराज (इलाहाबाद)
- नासिक
- उज्जैन
इसी कारण इन चारों स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है। उज्जैन में जब यह ज्योतिषीय योग बनता है, तो इसे सिंहस्थ कुंभ कहा जाता है।
3. धार्मिक उद्देश्य:–
सिंहस्थ को मनाने का मुख्य उद्देश्य पवित्र क्षिप्रा नदी में स्नान कर आत्मा को शुद्ध करना और पुण्य प्राप्त करना है। भक्तजन मानते हैं कि इस स्नान से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
4. सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व:–
सिंहस्थ सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संगम भी है – यहां साधु-संत, अखाड़े, कथा-कीर्तन, योग, ध्यान और प्रवचन होते हैं। यह भारत की एकता, संस्कृति और श्रद्धा का प्रतीक है।